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क्यों प्रह्लाद के मन में था भगवान के प्रति विश्वास
क्यों प्रह्लाद के मन में था भगवान के प्रति विश्वास
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हिरण्यकशिपु नाम का एक राजा था
हिरण्यकशिपु नाम का एक राजा था
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उसने भगवन शिव का कठोर तप करके उन्हें प्रसन्न किया
उसने भगवन शिव का कठोर तप करके उन्हें प्रसन्न किया
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उसने भगवन से वर प्राप्त किया कि
उसने भगवन से वर प्राप्त किया कि
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ना अंदर मरुँ न बाहर, न भूमि पर मरुँ ना आकाश में , न जल में न थल में
ना अंदर मरुँ न बाहर, न भूमि पर मरुँ ना आकाश में , न जल में न थल में
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न अश्त्र से मरुँ न शस्त्र से, ना मनुष्य से मरुँ न पशु से
न अश्त्र से मरुँ न शस्त्र से, ना मनुष्य से मरुँ न पशु से
एक दिन प्रह्लाद ने कुम्हार के यहाँ आवे में लगी आग से बिल्ली के बच्चो को जीवित बचते हुए देखा लगा
एक दिन प्रह्लाद ने कुम्हार के यहाँ आवे में लगी आग से बिल्ली के बच्चो को जीवित बचते हुए देखा लगा
जिसके बाद वह भगवान् को मानने, पूजा व् उन पर विश्वास करने लगा
जिसके बाद वह भगवान् को मानने, पूजा व् उन पर विश्वास करने लगा
जिसके कारण हिरण्यकशिपु ने अपने पुत्र को मारने का प्रयत्न किया
जिसके कारण हिरण्यकशिपु ने अपने पुत्र को मारने का प्रयत्न किया
भगवन विष्णु ने वैशाख मास शुक्ल पक्ष की चतुर्दर्शी को नृसिंह अवतार रूप में हिरण्यकशिपु का वध किया
भगवन विष्णु ने वैशाख मास शुक्ल पक्ष की चतुर्दर्शी को नृसिंह अवतार रूप में हिरण्यकशिपु का वध किया